भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मोह-बंध / अज्ञेय
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:40, 9 अगस्त 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अज्ञेय |संग्रह=अरी ओ करुणा प्रभाम...' के साथ नया पन्ना बनाया)
मोह-बन्ध हम दोनों
एक बार जो मिले रहे
फिर मिले, इसे क्या कहूँ :
कि दुनिया इतनी छोटी है-
या इतनी बड़ी?
हम में जो कौंध गयी थी
एक बार पहचान, उसी में
आज जुड़ी जो नयी कड़ी-
क्या कहूँ इसे :
इतिहास दुबारा घटित नहीं होता, या वह है
पुनर्घटित की एक लड़ी?
बिछुड़ जाएँगे फिर हम, फिर भी
हार आज को नहीं गिनेंगे,
इस को अभी, आज क्या कहूँ :
कि जीवन एक मोह है जो साहस को हर लेता है,
या कि एक साहस, जो काट रहा है
बन्ध मोह के घड़ी-घड़ी?
दिल्ली-कलकत्ता-कटक (रेल में), 10-12 अप्रैल, 1957