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यह मुकुर / अज्ञेय
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यह मुकुर दिया था तू ने :
आज यह मुझ से टूट गया।
यों मोह कि तेरे प्रिय की छवि को
बार-बार मैं देखूँ-छूट गया।
उस दिन यह मुकुर रचा तेरा,
तेरे हाथों में टूटेगा,
मोह दूसरा पात्र प्यार का
रचने का उस दिन क्या
तुझ से छूटेगा?
अल्मोड़ा
10 जुलाई, 1958