भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सब तमन्नाएँ हों पूरी / कुमार विश्वास

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:00, 27 फ़रवरी 2008 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सब तमन्नाएँ हों पूरी, कोई ख्वाहिश भी रहे

चाहता वो है, मुहब्बत मे नुमाइश भी रहे


आसमाँ चूमे मेरे पँख तेरी रहमत से

और किसी पेड की डाली पर रिहाइश भी रहे


उसने सौंपा नही मुझे मेरे हिस्से का वजूद

उसकी कोशिश है की मुझसे मेरी रंजिश भी रहे


मुझको मालूम है मेरा है वो मै उसका हूँ

उसकी चाहत है की रस्मों की ये बंदिश भी रहे


मौसमों मे रहे 'विश्वास' के कुछ ऐसे रिश्ते

कुछ अदावत भी रहे थोडी नवाज़िश भी रहे