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सपने में / अज्ञेय
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सपने में अनजानी की
पलकें मुझ पर झुकीं
गाल मेरे पुलकाती सरक गयीं
गीली अलकें
मेरे चेहरे को
लौट-लौट सहला
मुझ को सिहरा कर निकल गयीं।
मैं जाग गया
जागा हूँ
उस अनपहचानी के
अनुराग पगा :
वह कौन? कहाँ?
अनजानी :
अन्धकार को ताक रहा मैं
आँखें फाड़े
ठगा-ठगा!
महावृक्ष के नीचे
जनवरी, 1969