भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बालू घड़ी / अज्ञेय

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:39, 9 अगस्त 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अज्ञेय |संग्रह=सागर-मुद्रा / अज्ञ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 
 तुम मेरी एक निजी घड़ी
जिस में मैं ओक भर-भर
समय पूरता हूँ
और वह बालू हो कर रीत जाता है।

जिस बालू को मैं फिर बटोरता हूँ।
किस के पैरों की छाप है
इस बालू पर जिसे ताकते-ताकते
मेरा सारा चेतन जीवन बीत जाता है?
और मैं फिर अपने को पाने के लिए तुम्हें अगोरता हूँ।

बर्कले (कैलिफ़ोर्निया), 28 मार्च, 1969