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सागर मुद्रा - 14 / अज्ञेय
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सागर, ओ आदिम रस जिस में समस्त रूपाकार
अपने को रचते हैं,
जिस में जीवन आकार लेता है, बढ़ता है, बदलता है,
ओ सागर, काल-धाराओं के संगम,
काल-वाष्प के उत्स, काल-मेघ के लीलाकाश,
काल-विस्फोट की प्रयोग-भूमि,
सागर, ओ जीव-द्रव, वज्रवक्ष,
ओ शिलित स्राव, ओ मार्दव
आदिम जीवन कर्दम,
ओ आलोक-कमल!
ओ सागर, ओ अंकुर के स्फुरण, विकसने के उन्मेष,
फूलने के प्रतिफल
ओ मरने के कारण, मृत्यु के काल,
बीज के बीज,
चयित विकिरण, आन्दोलन अचंचल,
सागर, ओ!
ओ सागर, आदिम रस...
फरवरी, 1971