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समाधि-लेख / अज्ञेय

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मैं बहुत ऊपर उठा था, पर गिरा।
नीचे अन्धकार है-बहुत गहरा
पर बन्धु! बढ़ चुके तो बढ़ जाओ, रुको मत :
मेरे पास-या लोक में ही-कोई अधिक नहीं ठहरा!

अक्टूबर, 1969