भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मेज़ के आर-पार / अज्ञेय
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:54, 9 अगस्त 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अज्ञेय |संग्रह=पहले मैं सन्नाटा ब...' के साथ नया पन्ना बनाया)
मेज़ के आर-पार
आमने-सामने हम बैठे हैं
हमारी आँखों में
लिहाज है
हमारी बातों में
निहोरे
हमारे (अलग-अलग)
विचारों में
एक-दूसरे को कष्ट न पहुँचाने की
अकथित व्यग्रता।
अभी बैरा के आने पर सूची में
मैं खोजने लगूँगा कोई ऐसी चीज़ जो तुम्हें रुचती हो,
और तुम मँगाओगी कोई ऐसी जो तुम्हारे जाने
मुझे पसन्द है।
हमारे बीच
और मेज़ के ऊपर
सब कुछ ठीक है, ठीक-ठाक है;
नहीं है तो एक
मेज़ के नीचे
एक के पैर पर दूसरे का निर्मम दबाव
एक की हथेली में दूसरे की निर्दयी चिकोटी।