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चले चलो, ऊधो / अज्ञेय
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अब चले चलो, ऊधो!
इहाँ न मिलिहैं माधो!
अच्छा है इस वृन्दावन-नन्दग्राम-मथुरा में मरना-
और उधर, वहाँ दूर द्वारका पार फिर उभरना
दम साधो
और गहरे गमीर में कूदो।
चले चलो, ऊधो!
हाइडेलबर्ग, मई, 1975