भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

क्लाइस्ट की समाधि पर / अज्ञेय

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:57, 9 अगस्त 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अज्ञेय |संग्रह=महावृक्ष के नीचे / ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 एक ढंग है जीने का
एक मरने का
और एक
ये दोनों किनारे पार करने का।
समस्या बीच में है।
जिजीविषा। एक धन।
एक नदी।
एक असाध्य रोग। एक खेल।
एक लम्बा नशा जिसमें
एक किनारा दो में बँटता है,
दो किनारे एक में मिलते हैं।
समस्या बीच में है। अलग फूटती है-
मिल जाती है।
फूटती है, मिल जाती है
बहलाती है।
यों, यों, यों ही
तू सम्पूर्ण मेरा है, मेरे जीवन,
तू सम्पूर्ण मेरा है, मेरे मरण!

हाइडेलबर्ग, अप्रैल, 1976

बर्लिन के एक उद्यान के छोर पर क्लाइस्ट की कब्र उसी स्थान के निकट बनी है जहाँ उसने आत्महत्या की थी। समाधि-लेख क्लाइस्ट की ही दो पंक्तियों का है जिन का आशय है, ‘अब ओ अमरत्व, तू सम्पूर्ण मेरा है।’ प्रस्तुत कविता की अन्तिम दो पंक्तियों का सन्दर्भ यही है, उस के अलावा भी क्लाइस्ट के दुःखमय जीवन और उस की आत्महत्या के प्रसंगों के संकेत हैं।