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धावे / अज्ञेय

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पहाड़ी की ढाल पर लाल फूला है
बुरूँस, ललकारता;
हर पगडंडी के किनारे कली खिली है
अनार की; और यहाँ
अपने ही आँगन में
अनजान मुस्करा रही है यह कांचनार।
दिल तो दिया-दिलाया एक ही विधाता ने :
धावे मगर उस पर बोले हज़ार!