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परती तोड़ने वालों की गीत / अज्ञेय

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हम ने देवताओं की
धरती को
सींचा लहू से
कुक्कुटों, बकरों, भैंसों के;
हम ने प्रभुओं की
परती को
सींचा अपने लहू से
और अपने बच्चों के।

उस धरती पर
उस परती पर
अब पलते हैं उन प्रभुओं के
कुक्कुट, बकरे, भैंसे
जिन की खुशी में चढ़ाते हैं वे
उन देवताओं के चरणों पर
फूल, हमारे लाये
हमारे उगाये।

न हमें पशुओं-सा मरना मिला,
न हमें प्रभुओं-सा जीना,
न मिला देवताओं-सा अमरता में
सोम-रस पीना!

हम उन तीनों को
जिलाते रहे, मिलाते रहे,
वह बड़ा वृत्त बनाते रहे
जिस की धुरी से हम
लौट-लौट आते रहे...

भुवनेश्वर-पुरी, 1 जनवरी, 1980