भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पीली पत्ती : चौथी स्थिति / अज्ञेय

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:19, 10 अगस्त 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अज्ञेय |संग्रह=नदी की बाँक पर छाय...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 सरसराती पत्ती ने डाल से
मुक्ति तो माँगी थी
पर यह नहीं सोचा था
कि उस की माँग मान ली जाएगी।
यह मुक्ति क्या जाने मृत्यु हो
भरे वसन्त में-यह सोच
वह पीली पड़ गयी
और अन्त में थरथराती
झड़ गयी...

लखनऊ, 7 मार्च, 1981