भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

घटा झुक आई / अज्ञेय

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:46, 10 अगस्त 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अज्ञेय |संग्रह=ऐसा कोई घर आपने दे...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

घटा, झुक आयी
अचानक तुम यहाँ तक-
इन भवों को भी लोगी चूम?
न जाने!
मगर मन तो ललक से
अभी आया झूम!
मुँद गयी है पलक! अब
अधबीच से ही
तुम न जाना घूम!
ओ घटा लो!
इधर भी आया उमड़ घन
थोड़ा झुको : लो चूम!