भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हम ज़रूर जीतेंगे / अज्ञेय
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:54, 10 अगस्त 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अज्ञेय |संग्रह=ऐसा कोई घर आपने दे...' के साथ नया पन्ना बनाया)
जी हम ज़रूर जीतेंगे
अगर हम हार न गये
हम अपने दुश्मनों को मारेंगे
अगर वे ही पहले हमें मार न गये
अनन्त है काल-अनन्त-
पर कहाँ है समय हमारे पास
और मृत्यु है
और हम जी रहे हैं इस समय
इस समय इस समय..
कहाँ कहाँ
नहीं जमा हैं वे बम
जिनसे एक क्षण में
मिट जा सकते हैं हम
खो जा सकते हैं एक काली घुटन में
जो पृथ्वी को घेर लेगी-
मिट जा सकते हैं हम-
किस नये अर्थ में
मानव है निर्माता अपनी नियति का
हाँ, हम जीतेंगे ज़रूर
अगर हम (पहले ही और व्यर्थ में)
हार न गये
हम अपने दुश्मनों को मारेंगे
अगर वे ही पहले हमें मार न गये...