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फिर आऊँगा मैं भी / अज्ञेय

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लेकिन फिर आऊँगा मैं भी
लिये झोली में अग्निबीज
धारेगी जिसको धरा
ताप से होगी रत्नप्रसू।
कवि गाता है :
अनुभव नहीं न ही आशा-आकांक्षा :
गाता है वह अनघ
सनातन जयी।