भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मैत्री / अज्ञेय

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:43, 11 अगस्त 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अज्ञेय |संग्रह=क्योंकि मैं उसे जा...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 
मैं ने तब पूछा था :
और रसों में, क्या,
मैत्री-भाव का भी कोई रस है?

और आज तुम ने कहा :
कितना उदास है
यह बरसों बाद मिलना!

प्यार तो हमारा ज्यों का त्यों है,
पर क्या इस नये दर्द का भी कोई नाम है?

ग्वालियर, 16 अगस्त, 1968