भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
एक दिन - 2 / अज्ञेय
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:01, 11 अगस्त 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अज्ञेय |संग्रह=क्योंकि मैं उसे जा...' के साथ नया पन्ना बनाया)
एक दिन
अजनबियों के बीच
एक अजनबी आ कर
मुझे साथ ले जाएगा।
-जिन अजनबियों के बीच
मैं ने जीवन-भर बिताया है,
जिस अजनबी से
मेरी बड़ी पुरानी पहचान है।
कौन है, क्या है वह, कहाँ से आया है
जो ऐसे में मुझे रखता है
परिचिति के घेरे में आलोक से विभोर?
जिस के ही साथ मैं चलता हूँ
जिस की ही ओर?
जिस का ही आश्रित, मानो जिस की सन्तान?
उसी परिचित के घेरे में
तुम्हें आमन्त्रित करता हूँ,
वरता हूँ :
आओगे?
मेरे मेहमान-एक दिन?
ग्वालियर, 6-7 सितम्बर, 1968