भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चांद से अनगिनत इच्छाएँ / लाल्टू
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:40, 8 अक्टूबर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लाल्टू |संग्रह= }} चांद से अनगिनत इच्छाएँ साझी करता हूँ...)
चांद से अनगिनत इच्छाएँ साझी करता हूँ
चांद ने मेरी बातें बहुत पहले सुन ली हैं
फिर भी कहता हूँ
और चांद का हाथ
अपने बालों में अनुभव करता हूँ
चांद ने काग़ज़ क़लम बढ़ाते हुए
कविताएँ लिखने को कहा है
सायरन बज रहा है।