प्रेम एक, रूप अनेक / लालित्य ललित
पहले प्रेम
इशारों से मुलाक़ातों में होता था
रेस्टोरेंट से होता हुआ
बगीचों में पहंुचा
सिनेमाघर से ‘मॉल’ में तब्दील -
हुआ
और अब
मेट्रो स्टेशनों पर
उसकी सीढ़ियों पर
एकदम चुपचाप प्रेमी
आंखों में उतरकर
एक दूसरे की जिज्ञासाओं
को
ऐसे पढ़ रहे होते हैं
ये पढ़े लिखे
रट्टू तोते
जैसे नेत्रहीनों की
ब्रेल लिपि पढ़ने का
प्रमाण पत्र हासिल कर
लिया हो
और तो ओर
रिंगटोन से प्रेमिकाओं की
पहचान
अब हर नौजवान की अनिवार्य
योग्यता में शामिल हो गई है
कब किस की रिंगटोन बजी
फ़ोन वाइब्रेशन पर था
हुई हलचल
मस्त एस.एम.एस. ने
मन को तसल्ली
और
ठंडी हवा का झोंका-सा दिया ।
तैयार होने लगी वह
शीशे के सामने
शरमाई सकुचाई
मां हैरान है
मां सब जानती है
बेटा ! ज़रा जल्दी आना
पापा के घर आने से पहले
मेट्रो की सीढ़ियां
मेट्रो में प्रेम
शापिंग मॉल में प्रेम
संदेशों के जाम से
घबराया नेटवर्क
सब प्रेम में है
सपनों में है
हक़ीक़त को ऩज़र अंदाज़
करती पीढ़ी
ज़रूर प्रेम में हैं
करें प्रेम कोई दिक्कत-
नहीं
लेकिन कोई पक्ष
अपमानित न हो
इसका ख़्याल रखें
पापा के आने से पहले
बिटिया घर आ चुकी थी
बड़ी खुश है बिटिया
मां की सहेली बिटिया
बड़ी प्यारी बिटिया
सपनों को साकार करती
बिटिया ।