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चाय वाला लड़का / लालित्य ललित

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चाय वाला लड़का
छोटू, बहादुर, अबे सुनियो
के नाम से पुकारा जाता है
केबिन-केबिन सीट-सीट
चाय बांटता है
संुदरियों को निहारता हुआ
प्लेटफार्म से आगे बढ़ रहा है
जैसे आगे बढ़ जाती है
वसंती शर्मा मालकिन को -
सब्ज़ी दे कर और शर्मा जी
अख़बार पढ़ते हुए
बालकनी में चहल क़दमी
करते हैं कई-कई बार
वसंती सब जानती है
और जो जानती नहीं हैं न
वह हैं मिसेज शर्मा
इसी निहारन-ताड़न में
लगी है दुनिया
आपको ‘पुल’ बना रही है
दुनिया
कब किसने आपके गुब्बारे मंे
हवा भर दी
और कब किसने निकाल दी
आपको पता ही नहीं चलता
आप चले जा रहे हैं
कार चलाते हुए
अपनी धुन मंे
अपनी ऱतार में
बगल से कोई गुज़र गई
और आप तत्क्षण
बाबा रामदेव की तरह
कल्पना लोक में
ध्यानस्थ हो गए
और भांति-भांति की
भंगिमाओं में ख़ुद को
महसूस करने लगे
जी हां ! यही तो
स्वप्न लोक है
अगर यही योग, सब
सब अपना लें तो रूक जायेंगे
महिलाओं पर अत्याचार,
थम जाएंगे व्यभिचार
और भी अन्य किसिम के
व्यवहार आराम से चलाएं कार
‘स्मूथली’ पहुंच जाएं घर
यही हो सपना अपना समझे !
या समझाऊं !!