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पत्थरों के शहर में-1 / संगीता गुप्ता

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पत्थरों के शहर में
जीने के लिए
बहुत ज़रुरी था
पत्थर बन जाना

अचानक
पत्थर पर
लकीर की तरह
दूर तक खिंच गया है
तुम्हारा स्नेह

बदलता लग रहा है
अब तो
पथरा जाने का भी अर्थ