भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नदी की प्यास / संगीता गुप्ता

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:48, 29 अगस्त 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संगीता गुप्ता |संग्रह=प्रतिनाद / ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


नदी की प्यास
और बूँद भी कहाँ मिली
बढ़ती रही प्यास
और कामना भी कहाँ घटी
अगर कुछ घटा
तो बस जीवन
चलता रहा यूँ ही
हिसाब - किताब
बढ़ती प्यास, कामना
और घटते जीवन का
पकड़ ली तुम्हारी बाँह
डूबता कोई पकड़ता है
तिनका जैसे
कभी छोड़ा कहाँ
फिर तुमने
बन गये साधना
और सोख लिया सब
कामना, प्यास, बेचैनी
यहाँ तक कि मुझे भी
बना दिया मुझे
एक नदी गहरी
यूँ प्यास का
नदी बन जाना
अच्छा - सा लगता है