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बॉंटना चाहता है मन / संगीता गुप्ता

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बाँटना चाहता है मन
इस शरद ऋतु को
तुम्हारे साथ
इसकी खुनक, महक मस्ती
और तुम्हें
भरना चाहती हूँ
बाँहों में अपनी
और हॅंसना चाहती हूँ
फिर से
बे - बात, तुम्हारे साथ
भीगी घास पर नंगे पाँव
चलना चाहती हूँ
बेपरवाह
देखना चाहती हूँ
सुबह सुबह
उग रहे सूरज
और खिलते
नन्हें फूल को
तुम्हारे साथ