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दो पलों के बीच / संगीता गुप्ता
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दो पलों के बीच
ठहरा हुआ
विराट शून्य
खोज रही हूँ जिसमें
अपने होने का अर्थ
जन्म और मृत्यु जैसे
शाश्वत सत्य के बीच
एक सच मेरा भी तो होगा
मेरे होने का भी
कोई प्रयोजन
निर्धारित होगा
हमदम नही कोई
पथ ही साथी
चल रही हूँ
न जाने कब
कहाँ पहुँचना है
क्या खोना
क्या पाना है
या सब खोना है
या सब पाना है
या खोना, पाना
सब छोड़
मुक्त हो जाना है