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'सती बैठी पद्मासन मारे / गुलाब खंडेलवाल

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सती बैठी पद्मासन मारे
लक्ष्मण फिरे चिता से नतशिर जैसे रण में हारे

दर्शन को मुख-छवि अकलंका
उमड़ पड़ी शोकाकुल लंका
विकल भालु-कपि-अनी सशंका
रोये सहचर सारे

पर आश्चर्य! घेर कोमल तन
मातृ-अंक बन गया हुताशन
लपटें हुई शीत हिम-चन्दन
फूल बने अंगारे

प्रिया पितागृह से ज्यों आयी
प्रभु ने बायीं ओर बिठायी
कहा अनुज से--'अब तो भाई!
दुःख मिट गये तुम्हारे!

सती बैठी पद्मासन मारे
लक्ष्मण फिरे चिता से नतशिर जैसे रण में हारे