Last modified on 29 अगस्त 2012, at 20:31

कितने गीत सुनाऊँ ! / गुलाब खंडेलवाल

Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:31, 29 अगस्त 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह=मेरे गीत, ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


कितने गीत सुनाऊँ !
जी करता है अब अगीत बन कर ही तुझ तक आऊँ

जोड़-तोड़ कुछ शब्द झूठ-सच
गीत हार कितना भी दूँ रच
ओ अव्यक्त,अनाम,अनिर्वच!
क्या तुझको गा पाऊँ !

नयन आवरण ज्यों दर्शन में
देह आवरण आलिंगन में
गीतों से तो और मिलन में
नव व्यवधान बनाऊँ

पाना है निज अंतरतम में
तुझे शब्द के पार अगम में
तोड़ लेखनी, डूब स्वयं में मौन
न क्यों हो जाऊँ !

कितने गीत सुनाऊँ !
जी करता है अब अगीत बन कर ही तुझ तक आऊँ