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संध्या की वेला / गुलाब खंडेलवाल

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संध्या की वेला
श्रांत-वदन क्लांत-चरण और मैं अकेला

शून्य गगन शून्य धरा
लुप्त किरण ज्योति-करा
उर में अनुताप भरा
स्मृतियों का मेला

कहाँ सहृद बंधु सभी
संग थे जो अभी अभी !
कर का दर्पण तक भी
करता अवहेला

संध्या की वेला
श्रांत-वदन क्लांत-चरण और मैं अकेला