भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कलकत्ता - 2 / संगीता गुप्ता

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:22, 12 सितम्बर 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संगीता गुप्ता |संग्रह=समुद्र से ल...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


बिछुड़ कर भी
अनजाने, अनचाहे
समूचे वजूद पर
पसर जाता वह

जिसने
हर छोटी - बड़ी सफलता पर
झूम कर
बाहों में भरा
बहुत लाड़ से सहेजा
हर अभियान में
हमकदम, हमसफर

इतना साझा
रचा - बसा सांसों में जो
कैसे भूलोगे उसे
बार - बार, हर बार
दास्तो के चेहरों में
तब्दील हो जाता
वह शहर

पूरा का पूरा
साथ आयेगा
आपके बाहर
आपके भीतर