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चित्र के बाहर रह गया प्रेम / संगीता गुप्ता

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चित्र आंकना है एक ...

कल्पना में नहीं उभरती
कोई आकृति विशिष्ट
कोई खास रंग

कृष्णमय गहरा नीला
बांधता ...
कभी दहकते गुलमोहर
कभी जीवंतता भरा - हरा
दमकता पीला
सफेद धुला
या बैरागी गेरुआ -
तय नहीं हो पाता
कुछ भी
पर, आंकना है चित्र ...

और
पाती है
अचकचा कर
कैनवास कर
बना हुआ
एक समूचा
इन्द्रधनुष
न जाने कैसे
किन रंगों से