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कामना / संगीता गुप्ता

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तय था
साथ - साथ चलेंगे
दूर तक
विकसेंगे

उंगली थाम बच्चे - सी
छोटे कदमों से
चलना चाहती थी वह

जीवन के मध्याहन तक पहुँच
परिपक्व, तटस्थ, मोहमुक्त
हुआ वह
लौटा बीच रास्ते से
हो गया ओझल

नासमझ, भावुक, मोहमयी
वेगवती नदी
बहती रही बिना ठहरे