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घर / संगीता गुप्ता

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ईट, पत्थर, गारे
सीमेंट से
नहीं बनता
घर बनता है
आस्था से औरत की -
पल - पल मिटती
और फिर - फिर खड़ी होती

भले ही
रेत का घरौंदा
समझे
आदमी
और छोड़े तो छोड़ जाये

पर अब
भरभरा कर
नहीं टूटता वह
किसी के चले जाने से

औरत रहती है
और बना रहता है घर