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औरत - 1 / संगीता गुप्ता

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बच्चे
परिवार
समाज
मान - मर्यादा
के लिए
कब तक
इस्तेमाल होगा तुम्हारा

क्यों
बार - बार
शहीद होगी तू
खंड - खंड होगा
तुम्हारा ही आत्मसम्मान

विवाह की सफलता
का दायित्व
क्यों सदा
तुम्हारे कंधों पर होगा

अपने लिए
अपने मूल्यबोध के लिए
विवशताओं को परे ठेल
थोपे दायित्वों की बाध्यता से मुक्त
जीवन की आकांक्षा
नहीं कर सकती
क्यों तुम ?

जहॉं सहज
समभाव
सब साथ हों
साथ - साथ विकसें
ऐसा जीवन
क्यों न हो
प्राप्य तुम्हारा