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औरत - 5 / संगीता गुप्ता

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उसे देख
बार - बार, हर बार
यूं लगा
एक जमी हुई झील वह
लाख चाहे तब भी
खुद तैर नहीं पायेगी उसमें
और
कोई दूसरा भी उसमें
कहां डूब पायेगा