भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
साक़िया तेरा इसरार अपनी जगह / नवाज़ देवबंदी
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:23, 16 सितम्बर 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नवाज़ देवबंदी |संग्रह= }} <poem> साक़ि...' के साथ नया पन्ना बनाया)
साक़िया तेरा इसरार अपनी जगह
तेरे मैकश का इन्कार अपनी जगह
तेग़ अपनी जगह दार अपनी जगह
और हक़ीक़त का इज़्हार अपनी जगह
अब खंडहर है खंडर ही कहो दोस्तो
शीश महलों के आसार अपनी जगह
तूर पर लाख मूसा से हो गुफ़्तागू
अर्श-ए-आज़म पे दीदार अपनी जगह
अव्वलन हक़ ने तख़्लीक़ जिसको किया
सबके बाद उसका इज़हार अपनी जगह
मुख़्तसर ये बता सर बा-कफ़ कौन था
जीत अपनी जगह हार अपनी जगह
भाई से भाई के कुछ तक़ाज़े भी हैं
सहन की बीच की दीवार अपनी जगह