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गुमचोट / चंद्रभूषण

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सब ठीक-ठाक है
बस, एक तकलीफ़
जब-तब जीने नहीं देती

जानता नहीं कि यह क्या है

याद से जा चुकी
या किसी और जन्म में लगी
भीतर की कोई भोथरी गुमचोट

कोई अनुपस्थिति
कोई अभाव
कोई बेचारगी कि
हम अपने ख़याल को सनम समझे थे

इस ख़याल का कोई क्या करे

भीड़-भरी राहों में खोए
न जाने कितने
ख़याली सनम
याद आते हैं

क्यूँ न इक और बनाया जाए

भीतर इतनी खटर-पटर
इतनी आमद-रफ़्त
इतना शोर

ऐसा कोई ठंडा
पोशीदा कोना कहाँ है
जहाँ उसे ठहराया जाए

यह एक साफ़-सुथरे
पागलपन की तलाश है
मुझे भी ऐसा लगता है

इस दर्द का इलाज मगर कहाँ से लाया जाए