भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अबोली बीन / विमल राजस्थानी

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:06, 21 अक्टूबर 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विमल राजस्थानी |संग्रह=लहरों के च...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


है पड़ी कब से अबोली बीन, आतुर तार, कोमल-
अंगुलियों का स्पर्श मृदु दे दो सुहाना

कब तलक यह रात सन्नाटा बुनेगी
कब तलक स्वर-सुन्दरी सिर को धुनेगी
कब तलक तारे भरेंगे सिसकियाँ री !
कब तलक नभ-अश्रु यह दूर्वा चुनेगी

कब तलक गहरी उदासी कुंज झेलें
विकल कोकिक-कण्ठ में तड़पे तराना

नींद से चैंकी नहीं सौदामिनी है
प्यास पीड़ा की बनी अनुगामिनी है
बावला पावस भटकता मेघ-मग में
राग वैरागी, वियोगीनी रागिनी है

इन्द्रधनुषी मन मरे सातों सुरों के
तुम न ढूँढो और अब कोई बहाना