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व्यक्तित्व की खोज / विमल राजस्थानी

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आह ! चारों ओर हैं घेरे मुझे
कुंडलित व्यक्तित्व सब सिकुड़े हुए

जो कि उछलें ज्वार-सा, उमड़े चढ़ें
छू सकें जो व्योम की ऊंचाइयाँ
कह, भला पाऊँ कहाँ व्यक्तित्व वे
हो नहीं जो मात्र कुछ परछाइयाँ

सृष्टि के प्रारम्भ में वे थे मिले
जन्म बीते कोटिशः बिछुड़े हुए

धुआँ देती लकडि़यों की आँच से
सीझने का स्वाद ही कुछ और है
जो जले अपनी लगाई आग से
राख के वे ढेर ही सब ठौर हैं

भीड़ अंधों की, बदन को नोंचती
एक-दो थे मीत, वे कुबड़े हुए