भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुक की व्यर्थता / भारत भूषण अग्रवाल

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:05, 22 अक्टूबर 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भारत भूषण अग्रवाल }} <poem> दर्द दिया ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दर्द दिया तुमने बिन माँगे, अब क्या माँगू और ?
मन के मीत ! गीत की लय, लो, टूट गई इस ठौर
गान अधूरा रहे भटकता परिणति को बेचैन
केवल तुक लेकर क्या होगा : गौर, बौर, लाहौर ?