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मुर्गा फार्म से (2) / सत्यनारायण सोनी

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पोल्ट्री फार्म देखते हुए
हमने नाक पर
रख लिया रूमाल
पर वहां का कामगार हंसा
खींचता रहता है
रात-दिन
लम्बी-लम्बी सांसें
चूजों बीच।

चूजों बीच घूमते हुए
उसके सामने
साकार हो उठता है
घर में जलता चूल्हा
तवे पर सिकती रोटियां,
इर्द-गिर्द
टूटी-फूटी प्लेटें लिए
रोटी के इंतजार में बैठे बच्चे।

सचमुच,
सपनों में खोया हंसा
अब भी
सूंघ रहा है-
रोटियों की भीनी-भीनी महक।

2004