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मुर्गा फार्म से (4) / सत्यनारायण सोनी

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मुर्गा फार्म में
पल रहे चूजों ने
चूजों से
मुर्गा बनने के
चालीस दिनों में
न जाने कितने सपने
संजोए होंगे
अपनी जीवन-यात्रा के।
कितनी स्नेहिल आँखों में
लहलहाई होंगी
फसलें
अनगिनत।

और अब
आधे से अधिक मुर्गे
चल दिए हैं
अय्याशों के
पेट भरने के निमित्त।
शेष खोज रहे
सूनी आँखों
अपने अंतरंग दोस्तों को।

विछोह का दु:ख
कोई उनसे जाने!

2004