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मित्र (1) / सत्यनारायण सोनी
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मित्र-
हरा रूंख
जिसकी छांव
हर लेती
ताप,
थकान समूची।
मरहम
जो भर देती
गहरे जख्म
पुराने।
मझ जेठ
बरखा की फुहार
खुशियों का अम्बार
अपार-अपार-अपार।
2004