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उस देश की दिगन्‍तों में विख्‍यात / कालिदास

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तेषां दिक्षु प्रथितविदिशालक्षणां राजधानीं
     गत्‍वा सद्य: फलमविकलं कामुकत्‍वस्‍य लब्‍धा।
तीरोपान्‍तस्‍तनितसुभगं पास्‍यसि स्‍वादु यस्‍मा-
     त्‍सभ्रूभंगं मुखमिव पयो वेत्रवत्‍याश्‍चलोर्मि।।

उस देश की दिगन्‍तों में विख्‍यात विदिशा
नाम की राजधानी में पहुँचने पर तुम्‍हें अपने
रसिकपने का फल तुरन्‍त मिलेगा - वहाँ तट
के पास मठारते हुए तुम वेत्रवती के तरंगित
जल का ऐसे पान करोगे जैसे उसका
भ्रू-चंचल मुख हो।