भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गम्‍भीरा के चित्‍तरूपी निर्मल जल में / कालिदास

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:19, 28 अक्टूबर 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKAnooditRachna |रचनाकार=कालिदास |संग्रह=मेघदूत / कालिद...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: कालिदास  » संग्रह: मेघदूत
»  गम्‍भीरा के चित्‍तरूपी निर्मल जल में

गम्‍भीराया: पयसि सरितश्‍चेतसीव प्रसन्‍ने
     छायात्‍मापि प्रकृतिसुभगो लप्‍स्‍यते ते प्रवेशम्।
तस्‍यादस्‍या: कुमुदविशदान्‍यर्हसि त्वं न धैर्या-
     न्‍मोधीकर्तु चटुलशफरोद्वर्तनप्रेक्षितानि।।

गम्‍भीरा के चित्‍तरूपी निर्मल जल में तुम्‍हारे
सहज सुन्‍दर शरीर का प्रतिबिम्‍ब पड़ेगा ही।
फिर कहीं ऐसा न हो कि तुम उसके कमल-
से श्‍वेत और उछलती शफरी-से चंचल
चितवनों की ओर अपने धीरज के कारण
ध्‍यान न देते हुए उन्‍हें विफल कर दो।