भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वहाँ से आगे कनखल में शैलराज / कालिदास

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:30, 28 अक्टूबर 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKAnooditRachna |रचनाकार=कालिदास |संग्रह=मेघदूत / कालिद...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: कालिदास  » संग्रह: मेघदूत
»  वहाँ से आगे कनखल में शैलराज

तस्‍माद्गच्‍छेरनुकनखलं शैलराजावतीर्णा
     जहृो: कन्‍यां सगरतनयस्‍वर्गसोपानपड़्क्तिम्।
गौरीवक्‍त्रभृकुटिरचनां या विहस्‍येव फेनै:
     शंभो: केशग्रहणमकरोदिन्‍दुलग्‍नोर्मिहस्‍ता।।

वहाँ से आगे कनखल में शैलराज हिमवन्‍त
से नीचे उतरती हुई गंगा जी के समीप
जाना, जो सगर के पुत्रों का उद्धार करने के
लिए स्‍वर्ग तक लगी हुई सीढ़ी की भाँति
हैं। पार्वती के भौंहें ताने हुए मुँह की ओर
अपने फेनों की मुसकान फेंककर वे गंगा
जी अपने तरंगरूपी हाथों से चन्‍द्रमा के
साथ अठखेलियाँ करती हुई शिव के केश
पकड़े हुए हैं।