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जंगली हवा चलने पर देवदारु के तन / कालिदास
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तं चेद्वायौ सरति सरलस्कन्धसंघट्टजन्मा
बाधेतोल्काक्षपितचमरीबालभारो दवाग्नि:।
अर्हस्येनं शतयितुलं वारिधारासहस्त्रै-
रापन्नार्तिप्रशमनफला: संपदो ह्युत्तमानाम्।।
जंगली हवा चलने पर देवदारु के तनों की
रगड़ से उत्पन्न दावाग्नि, जिसकी चिनगारियों
से चौंरी गायों की पूँछ के बाल झुलस जाते
हैं, यदि उस पर्वत को जला रही हो, तो तुम
अपनी असंख्य जल-धाराओं से उसे शान्त
करना। श्रेष्ठ पुरुषों की सम्पत्ति का यही
फल है कि दु:खी प्राणियों के दु:ख उससे
दूर हों।