भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हे कामचारी मेघ / कालिदास

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:42, 28 अक्टूबर 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKAnooditRachna |रचनाकार=कालिदास |संग्रह=मेघदूत / कालिद...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: कालिदास  » संग्रह: मेघदूत
»  हे कामचारी मेघ

तस्‍योत्‍सङ्गे प्रणयिन इव स्‍रोतङ्गादुकूलां
     न त्‍वं दृष्‍ट्वा न पुनरलकां ज्ञास्‍यसे कामचारीन्!
या व: काले वहति सलिलोद्गारमुच्‍चैर्विमाना
     मुक्‍ताजालग्रथितमलकं कामिनीवाभ्रवृन्‍दम्।।

हे कामचारी मेघ, जिसकी गंगारूपी साड़ी
सरक गई है ऐसी उस अलका को प्रेमी
कैलास की गोद में बैठी देखकर तुम न
पहचान सको, ऐसा नहीं हो सकता। बरसात
के दिनों में उसके ऊँचे महलों पर जब तुम
छा जाओगे तब तुम्‍हारे जल की झड़ी से वह
ऐसी सुहावनी लगेगी जैसी मोतियों के जालों
से गुँथे हुए घुँघराले केशोंवाली कोई कामिनी
हो।