भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
देवता चाहते हैं, ऐसी रूपवती कन्याएँ / कालिदास
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:57, 28 अक्टूबर 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKAnooditRachna |रचनाकार=कालिदास |संग्रह=मेघदूत / कालिद...' के साथ नया पन्ना बनाया)
|
मन्दाकिन्या: सलिलशिशरै: सेव्यमाना मरुदभि-
र्मन्दाराणामनुतटरुहां छायया वारितोष्णा:।
अन्वेष्टव्यै: कनकसिकतामुष्टिनिक्षेपगूढै:
संक्रीडन्ते मणिभिरमरप्रार्थिता यत्र कन्या:।।
देवता जिन्हें चाहते हैं, ऐसी रूपवती कन्याएँ
अलका में मन्दाकिनी के जल से शीतल
बनी पवनों का सेवन करती हुई, और नदी
किनारे के मन्दारों की छाया में अपने आपको
धूप से बचाती हुई, सुनहरी बालू की मूठें
मारकर मणियों को पहले छिपा देती हैं और
फिर उन्हें ढूँढ़ निकालने का खेल खेलती
हैं।