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तुम से अच्छे / महेश चंद्र पुनेठा

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इतना दमन / शोषण
अन्याय-अत्याचार
फिर भी ये चुप्पी ।

तुम से अच्छे तो
सूखे पत्ते हैं।

वे और उनकी संस्कृति
वे केवल हमारी जेबें ही ख़ाली नहीं करते
जेब के रास्ते दिल-दिमाग तक भी पहुँच जाते हैं
ख़ाली कर उन्हें
अपने मतलब के सॉफ़्टवेयर लोड कर देते हैं वहाँ
सूखे काठ में बदल देते हैं हमारी आत्मा को

एक औचित्य प्रदान करते हैं वे
अपने हर काम को
जैसे वही हों सबसे ज़रूरी
और
सबसे लोक कल्याणकारी ।

वे जोकों से भी ख़तरनाक होते हैं
केवल ख़ून ही नहीं चूसते
ख़तरनाक वायरस भी छोड़ जाते हैं हमारे भीतर
जिसके ख़िलाफ़
कारगर नहीं होता है कोई भी एंटी वायरस
रीढ़ और घुटने तक नहीं बच पाते साबूत

पता तक नहीं चलता
कि कब सरीसृप में बदल गए हम
कब संवेदनाओं की धार कुंद हो गई ।

गरियाते रहें उन्हें दिन-रात भले
मौक़ा मिलते ही
ख़ुद भी चूसने में पीछे नहीं रहते हैं हम
और
फिर हम भी
उसे औचित्य प्रदान करने में लग जाते हैं ।