भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ग़रीबी और अकर्मण्यता / महेश चंद्र पुनेठा

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:41, 28 अक्टूबर 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेश चंद्र पुनेठा |संग्रह= }} {{KKCatKavita}...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कर्ज लेकर
ख़रीदा जोग्या ने
आलू का महँगा बीज
खेत को
अच्छी तरह तैयार कर
बोया आलू

समय पर खाद
समय पर गुड़ाई
समय पर निराई
समय-समय पर पानी
ठंडी रातों में
जग-जागकर
बचाया
जंगली जानवरों से
पाले की मार से बचाने को
किए आवश्यक उपाय

पूरा परिवार
लगा रहा मेहनत में
मेहनत रंग लाई
अच्छी हुई फ़सल
बहुत सालों बाद
हुई इतनी अच्छी फ़सल

जोग्या को लगा
अबके तो पूरे होंगे उसके अधूरे अरमान
मिट जाएगी उसकी ग़रीबी

अबके बाज़ार में आलू
हो गया सस्ता
इतना सस्ता कि
बाज़ार तक पहुँचाने का
भाड़ा निकलना भी कठिन

खेतों में सड़ता रहा खुदा आलू
ऊपर से
बीज-खाद का उधार
सिर चढ़ा जोग्या के

कौन-सा कर्म करे
कौन-सा उपाय
उतार सके उधार
रात-रात भर सो न पाता वह...

ग़रीबी का कारण अकर्मण्यता को बताते हो तुम
कैसे विश्वास किया जाय भला तुम्हारे इस तर्क पर ।